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उन्नीसवां कदम

आँख के अंधे नाम नयन सुख ...

ओ  मूरख अज्ञानी रुकजा
क्यूँ पाँव कुल्हाड़ी मार रहा
जो तेरा जीवन सरसाता
क्यों वार उसी पर कर रहा !
आँख के अंधे नाम नयन सुख
करते हो वैसा  भरते हो
दूषित श्वास तुम्हें मारेगी
इसका भरम ना धरते  हो !
पढ़े लिखे विद्वान बने हो
अंगूठे टेक जैसी करनी
पहले खुद का नुकसान करो
फिर छाती अपनी धुननी !
जागो नर अब भी वक्त है
पूर्ण विनाश अभी दूर खड़ा
नाहक उसे बुलावा मत दो
वो दावानल सा दहक रहा ! 
प्रकृति की तुम करो अवज्ञा
वो चंगुल अपना तय्यार रखे
तू जितना वृक्ष विनाश करेगा
वो उतना तेरे नजदीक बढे !
जाग जाग मूरख अज्ञानी
ज्ञान चक्षु तो खोल जरा
उसी डाल को काट रहा है
जिस पर तेरा अस्तित्व टिका !
जागो .....
अब समय नियंता जागो
जागो वृक्ष पोषक जागो
जागो तुम और विश्व जगाओ
विनाश कगार खड़ा जागो !
हर मानव ये बात सोच ले
में एक वृक्ष लगाऊंगा
और दो को कहूँ लगाओ
ऐसा अहद उठाऊंगा !
दूजे पल करोड़ों वृक्ष लगेंगे
हरीतिमा हरियाली हो
सुखी धरा गमक उठेगी
जीवन में खुशहाली हो !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. सीख देती खरी खरी ,
    सार्थक रचना ।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २१ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अति आभार श्वेता जी

      Delete
  4. एक सार्थक संदेश देती सुंदर सृजन 👌👌👌 बधाई 💐💐💐

    ReplyDelete

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