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Showing posts from May, 2018

में में

में में .... में में ही करता रहा में में ही किये जाय इसी में के कारणे में ही काटा जाये ! में ही में को ढूंढता मैं को में की प्यास में हटे तब ही मिटे में मैं की ये प्यास ! में में करें क्या होत है चाहे जितना मिमियाओ में का कोई तर्पण नहीं में अर्पण कर में पाओ ! डा इन्दिरा  ✍

साँझ ढले

साँझ ढले .. साँझ ढले ही आ जाती है हर जलते दीपक के साथ यादै जलती धीरे धीरे हर जलते दीपक के साथ ! साँझ अकेली बैठी बैठी सोच रही एक ही बात कौन दे गया जाते जाते जीवन भर का ये अवसाद ! डा इन्दिरा  .✍

वीर बहुटी वीरांगना ईश्वरी कुमारी

वीर बहुटी वीरांगना ईश्वरी कुमारी ( अवध की रानी लक्ष्मी बाई ) क्रमशः 16 हजरत महल और बिरदिस सौपौ हमको तुमसे कोई उज्र नहीं निर्भय होकर राज करो या लड़ने हो जाओ खड़ी ! 17 सुन ईश्वरी धधक उठी अपनी तोहीन लगी भारी बाला राव संग सेना लेकर गोरों को रोकने निकल पड़ी ! 18 भली भांति जानती थी रानी उसके मुट्ठी भर  ही सैनिक है शत्रु बहूसंख्यक है बड़े भारी पर सेनानी क्यूँ कब डरते है ! 19 दूध मुहे बालक को अपने पीठ पे कस कर बांध लिया झांसी की रानी लगती थी लो ईश्वरी बन के चली बला ! 20 करी प्रतिज्ञा शरणागत जब तक सही सलामत नहीं निकल जाते अचरागढ़ क्या तुलसीपुर में दुश्मन कदम ना धर पाते ! 21 बेहद विषम मुकाबला था रानी पर एक एक पल भारी और फिरंगी बन के काल रानी को निगलने की तय्यारी ! 22 तभी संदेशा मिला रानी को मेहमान सुरक्षित निकल गये श्वास में श्वास भरी रानी ने बस दिये  कौल की लाज रहे ! 23 अब  अचानक रानी ने अपना अलग पैंतरा बदला धरती को अंतिम प्रणाम कर कदम जरा पीछे रख्खा ! 24 धरती को प्रणाम किया और नन्हे कँवर को पुचकारा वो भी मुल्क रहा था नटखट उसमें थी वही रक्त धारा ! 25

वीर बहुटी वीरांगना रानी ईश्वरी kumaari.

वीर बहुटी  वीरांगना ईश्वरी कुमारी ! ( अवध की रानी लक्ष्मी बाई ) सन 1857  में बागी हुए अवध के राजे रजवाडों में से कई लखनऊ के पतन के बाद हवा का रुख देख कर अंग्रेजों से जा मिले ! पर कुछ आत्म सम्मानी रजवाड़े आत्म समर्पण ना करते हुए आखरी श्वास तक जोर आजमाते हुए वतन पर अपना सब कुछ लुटाने मैं लगे रहे ! उनमें से एक थी गौड़ जिले में स्तिथ तुलसी पुर की रानी ईश्वरी कुमारी जिन्हें इतिहास कार अवध की रानी लक्ष्मी बाई भी कहते है ! लखनऊ के बाद बहराईच जिले की बोडी  रियासत से भी दर बदर मजबूर अवध के अंतिम नवाब बिरजिस कादर drऔर उनकी माँ बेगम हजरत महल ने इन्हीं रानी ईश्वरी कुमारी की रियासत की ऐतिहासिक अचवागढी में शरण ली थी ! यूं तो तुलसीपुर की रियासत अंग्रेजों की आँख में पहले ही खटकती थी क्यों की वो अंग्रेजों की सत्ता स्वीकार नहीं करती थी ! गद्दार दिग्विजय सिंह के कहने पर अंग्रेजों ने बगावत से पहले ही तुलसीपुर के राजा द्रग नारायण सिंह को गीरीफ्तार करवा कर लखनऊ के बेली गारद में नजर बन्द करवा दिया था ! नजर बंदी की  यातनायें भी द्रगविजय सिंह को नहीं हिला सकी ! प्राण देकर भी उन्होनें फिरंगियों की मदद कर

पुत्र गर्विता माँ

पुत्र गर्विता माँ 💕 मेरे मन की शर शय्या पर भीष्म प्रतिज्ञा जैसा तू यक्ष प्रश्न सब हल कर रहा धर्म युधिष्ठर जैसा तू ! मेरे स्वपन गंग  को तू  ही खींच धरा पर ले आया अतृप्त मातृ मन को तूने अमि कलश घट पिलवाया ! घूंट घूंट तृप्ति की मेरी तुझसे ही बस शाँत हुई आत्म तुष्टि सी में निमग्न सी परिभाषित सी मात हुई ! हर जन्म तू मेरा अंश हो तू ही उर्वर बीज बने तुझको ही कोख उपजाऊ तुझमें मेरा सर्वस्व ढले ! डा इन्दिरा  ✍ (अपने पुत्र मनु को समर्पित )

तपन

तपन .. भरी दोपहरी भरा हौसला तपन बाहर भीतर सब एक जठराग्नी मन झुलसाती सूरज की आग सेंकती देह ! छोटी उम्र हौसला भारी दोपहर अलाव सी जला करें बस्ता उठाने वाले कंधे पर जब बोझ ग्रहस्थी आन पड़े ! इससे अधिक जेठ क्या झुलसाये भूख तपन अंतडिया सेकें गुड्डे - गुडिया वाली उम्र में उम्र से अधिक वजन  खींचे ! पापी पेट क्या ना करवा दे जो ना करवा दे सो  कम है भरी दोपहरी ना धूप जलाये बस चूल्हा जल जाये क्या कम  है ! डा इन्दिरा  ✍

नारी जीवन तपन दुपहरी

नारी जीवन तपन दुपहरी ! नारी जीवन भरी दुपहरी तप्त अलाव सी जलती जाय तपन घनेरी झुलसे तन मन अगन जलन के भाव जगाय! निपट अकेली रेत पजरती पल कू  छाँव  ना ,  हलक सुखाय त्रसित भाव से गला चटखता बूँद छाँव की मिले ना हाय ! क्रंदन है मन द्वंद मचा है कौन अधिक नारी पजराय भरी दोपहरी या अभिलिप्सा जेठ मास दोनों हुई जाय ! मुट्ठी भर छाँव  ना मिले नेह छाँव  को मन तरसाय सर पर धूप पग रेत धंसे है किस ठौर रुकी जीवन की राह ! डा इन्दिरा  ✍

दस्तक कोई दे जाये

दस्तक कोई दे जाये ..🍁🍁 कुछ होश कुछ मदहोशी कुछ अनछुए अहसास पलकों में उतर आये कुछ अनदेखे ख्वाब ! 🍁 अरमान भी तुम ख्वाहिश भी तुम तुम धड़कन तुम्हीं करार नये रंग है नई अदा है नई शोखी नया अंदाज ! 🍁 तेरी यादै गुलमोहर सी बिखरा हुआ पराग दरीचौ से झांक रहा है महका महका ख्वाब ! 🍁 हर लम्हा पहलू से गुजरे धीरे से सहलाए आहट की ख्वाहिश सी जागे दस्तक कोई दे जाये ! 🍁 डा इन्दिरा  ✍

चितचोर

चितचोर 💕 राधे जी के महल मैं पहरों दियो लगाय कोई पुरुष अंदर नहीं आवे मुनादी करादी जाय ! भारी असमंजस पड गये कान्हा हाय रे दय्या कैसे होगी राधे बिन मोहे कल ना परत है बिन देखे कैसे अब होगी ! फिर जुगत लगाई कान्हा ने नाचन वारी को स्वांग  धरो नख से शिख तक शृंगार करो रति रूप सुन्दरी पड  गयो फीको ! सावरी  नार रूप पर दमके पायल झांझर चलते बाजे हाथ मैं खनके कंगना चूड़ियाँ जब  लचक अचक कर चाल चलें ! नैनन में कजरा तीखौ सौ सीधों दिल पर बार करें तन पीताम्बर पीली साड़ी स्वर्ण छटा अविराम सजे ! कान्हा पहुंचे राधे के घर राधे बैठी कछु मुरझाई नैन झुकाये इकली बैठी सखियन के ढिग भी  ना आई ! कान्हा छम  से कूद पड़े और नाचन की छवि दिखलाई अचकचाय  राधे भी देखी मन मैं भई  कछु खट्काई ! ये कौन है नाचन वारी आज तलक तो ना देखी जानी पहचानी सूरत लागे मन हरखे याको मुख वेखी ! नैन से नैन मिले जब ही राधे चकित भई भारी कान्हा कैसे आय गये इत बाहर इतनी पहरेदारी ! कान्हा कछु कछु नाच दिखावे कंगना खनकावे दय्या री हिये सजी बन माल देख के पहचानी राधे  गिरधारी ! जुड़ी प्रीत की डोर इस तरह टूटे से ना

कलम निगोड़ी

कलम निगोड़ी ✒ 💌 क्या कह तुम्हें करूँ सम्बोधित लिखते लगती लाज प्रिय लिखते ही कलम निगोड़ी कंप जाता है हाथ ! जाने किस विधि लिखना चाहूँ मन के सब जज्बात शुरू कहाँ से कहाँ अंत करूं मन मैं झंझावात ! इकली सोच रही मन माही पहले कौन सी बात लिखूं अनकहीं व्यथा लिखूं पहले या मन चिती सी  बात लिखूं ! या बिना लिखे ही खत भेज दूँ खुद ही लिख और पढ़ लेना जो मन भाव तुम्हें मन भाये उनका उत्तर दे देना ! अंखियों से कुछ काजल लेकर घोल के असुंअन मसि बनाई कुछ लिखूं उससे पहले ही पन्ने पर लो फैल गई स्याही ! लिखा आन लिखा धरा रह गया अब केवल भाव समझना है जो भाव तुम तक ना पहुंचे उन्हें ढूंढ कर पढ़ना है ! डा इन्दिरा  ✍

नारी शक्ति को समर्पित 🙏

नारी शक्ति को समर्पित ..🙏✊ मन मेरा क्रंदन करता है नारी के उत्पीड़न से नारी को भोग्या ही समझा ना  वाकिफ उसके कौशल से ! अब भी सँभल जाओ मति मंदो अब अच्छे आसार नहीं तार तार सा आँचल एक दिन गले फंद ना .बन जाये कहीं ! श्वास गले में अटक जायेगा लिया ना छोड़ा जायेगा नारी से शापित समाज फिर कभी नहीं बस पायेगा ! हनन कर रहे स्वयं तुम्हारा और गर्त में समा रहे अपने ही हाथों से नाहक दावानल तुम जगा रहे ! कैसा विचित्र समय आया है आँखें रहते अंधी हुए स्व जाये से अपमानित होते अभिशापित है अपने पन से ! उठो नारी भोग्या से योग्या बन कर दिखलाना होगा ममत्व नहीं अब ज्वाल बनो तुम मन विच्छेदन करना होगा ! स्वयं बनो अब अंगारे सी  लपटों से जज्बात हो जलते प्रवाल से भाव प्रज्वल्लीत डर ना ,  ना मन कोई संताप हो ! तू जगत नियंता की जननी है तू  नर - नारायण रूप धरे तू ही आँधी तू सोनामी आ अब दुर्गा का रूप धरें! डा इन्दिरा  ✍
वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ✊ क्रमशः   15 बहादुर सिंह हक बक से रह गये ये क्या हुआ लाडनू में विश्वस्त लोगों को बुलवाया बात चीत चली जल्द बाजी में ! 16 तभी सूजा पुरुष वेश में हाथ लम्बी छड  बन्दूक लिये ठाकुर दादा से हँस कर बोली में हूँ ना दादा फिर  चिंता किस लिये ! 17 जब तक लाडनू की बेटी सूजा की सांसों में सांसें है काली गौरी सेना की परछाई छू जाये क्या दम है ! 18 वादा करती हूँ दादों सा कह बन्दूक हवा मैं लहराई जीते जी दुश्मन घुस ना पायेगा कह सूजा ने दहाड़ लगाई ! 19 तुरत फुरत सेना गठित हुई सूजा के नेतृत्व मैं खुल कर राहु दरवाजा मुख्य मोर्चा बनाया सूजा ने चुन कर ! 20 इन सारी बातों से थी काली गौरी सेना अंजान हमला किया लाडनू पर क्या दम होगा ये मान ! 21 जब हमला किया लाडनू पर उत्तर प्रतिउत्तर मिला बराबर अंग्रेजों की सेना का मन डोला विफल हो रहे वो क्यों सरासर ! 22 ये क्या यहाँ कहाँ से सैनिक बराबर मुकाबला करते है बन्दूक .गोलियाँ तीर  तलवार भी यहाँ सैकड़ों चलते है ! 23 भाग खड़ी हुई अंग्रेजों की पलटन पल भर भी खड़ी ना रह पाई

वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई

वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राज पुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ..✊ सन 1857 ----1902  काल जीवन पथ था सूजा कँवर  राज पुरोहित का ! मारवाड़ की ऐसी वीरांगना जिसने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम मैं मर्दाने भेष में हाथ मैं तलवार और बन्दूक लिये लाड्नू (राजस्थान ) में अंग्रेजों से लोहा लिया और वहाँ से मार भगाया ! 1857 से शुरू होकर 1947 तक चला आजादी का सतत आंदोलन ! तब पूर्ण हुआ जब 15 अगस्त 1947 को देश परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त हुआ ! इस लम्बे आंदोलन में राजस्थान के योगदान पर इतिहास के पन्नों मैं कोई विशेष  चर्चा नहीं है ! आजादी के इतने  वर्ष बीत जाने के बाद भी राजस्थानी  वीरांगनाओं का  नाम और योगदान कहीं  रेखांकित नहीं किया गया है ! 1857 की क्रांतिकी एक महान हस्ती रानी लक्ष्मी बाई को पूरा विश्व जानता है ! पर सम कालीन एक साधारण से परिवार की महिला ने वही शौर्य दिखलाया और उसे कोई नहीं जानता ! लाड्नू  में वो मारवाड़ की लक्ष्मी बाई के नाम से जानी और पहचानी जाती है ! सूजा कँवर का जन्म 1837 के आस पास तत्कालीन मारवाड़ राज्य के लाडनू ठिकाने नागौर जिले ( वर्तमान मैं लाडनू शहर )में एक उच्च आद