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प्रश्न
यक्ष प्रश्न सी लिखी हुई है
हर रेख चेहरे पर
घूम घेर कर पूछ रही है
क्या गलती थी जीवन भर ।
निश्चल नेह या निस्वार्थ कर्म
क्या यही खोट था मेरा
जिसके चलते जीवन से पहले
पड़ाव आ गया मेरा ।
अनुत्तरित से अनेक प्रश्न
आंखों में भरे हुए है
हाय व्यथा कुछ कह न पाए
कितने लाचार हुए है ।
आंख धुँधलका मन मे विवशता
क्या यही कर्म प्रतिफल है
घिरा रहा कलरव से बचपन
आज सुना आंगन है ।
दे सके कोई इन प्रश्नों का उत्तर तो
जीवन पाए विश्राम
सतत चला अब शाम हो गई
प्रश्न वही खड़ा अविराम ।
डा इन्दिरा✍️
उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा आप ने
लाजवाब प्रस्तुती
शुक्रिया नीतू जी
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब....
शुक्रिया सुधा जी
Deleteबहुत बहुत आभार
ReplyDeleteअति आभार सखी यशोदा जी
ReplyDeleteऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
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