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Showing posts from February, 2018

होरी है

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अनुमान

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फागुन

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फागुन

रफ्तारे जिंदगी

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यादें

Drindiragupta. Blogspot. In तन्हा दूर कोई अपना सा याद आ गया आज  फागुन की रुत फाग जगाये  सोये  भाव जगा गया आज । हुआ सिंदूरी क्षितिज का अंचरा नीले नभ मैं फैल गया  यादो की ठप्पे दार चुनरिया  पवन उड़ा कर खोल गया । महक रही केसर की क्यारी  तेरी यादों से भीनी  चटख चटख कर कालिया महकी  याद आ गई सावन की । झिरमिर सा यादो का मेला  इत उत झूले सा डोल रहा  साँझ ढले कोई यायावर  मन राहो से चला गया । चुभने लगा रंग सिंदूरी  रतनारे सब रंग चुभे  नयन मूंद चुप होजा मनवा अब भोर कहां जो शितिज रंगे। डा इन्दिरा✍️

प्रश्न

Drindiragupta.blogspot.in प्रश्न  यक्ष प्रश्न सी लिखी हुई है  हर रेख चेहरे पर  घूम घेर कर पूछ रही है  क्या गलती थी जीवन भर । निश्चल नेह या निस्वार्थ कर्म  क्या यही खोट था मेरा  जिसके चलते जीवन से पहले  पड़ाव आ गया मेरा । अनुत्तरित से अनेक प्रश्न  आंखों में भरे हुए है  हाय व्यथा कुछ कह न पाए  कितने लाचार हुए है । आंख धुँधलका  मन मे विवशता  क्या यही कर्म  प्रतिफल है  घिरा रहा कलरव से बचपन  आज सुना आंगन है । दे सके कोई इन प्रश्नों का उत्तर तो  जीवन पाए विश्राम  सतत चला अब शाम हो गई  प्रश्न वही खड़ा अविराम । डा इन्दिरा✍️

तिल तिल

तिल तिल तिल तिल कर ही बिखर जात हूँ तिल भर कछु ना सुहाये तिल भर भी  कल नाहीं पडत  हें तिल तिल ये  समय बितो जाये ! तिल भर  भी  यदि तुम मिल जाते तिल भर चैन  मै पाती तिल भर ही मन मेरा हरखता तिल तिल ही जी जाती ! डा इन्दिरा ✍

वीरांगना किरण बाला ..

वीरांगना किरण बाला ✊ जहाँ राजपूत पुरुष अपनी वीरता के लिये प्रसिद्द है वही राजपूती महिलाये भी अपनी आन ,  बान ,  और सतीत्व की रक्षा के लिये प्रसिद्द है !  उनके अदम्य साहस को प्रमाणित करने के लिये कई कथा कहानी और प्रसँग प्रचलित है ! 1 ये बात उस काल की है जब भारत में मुगलो का शासन था अकबर था दिल्ली का बादशाह अपनी मन  मर्जी करता था ! 2 यू तो बड़ा गुणी था अकबर नव रत्न रखे दरबारी गायन , वादन ,  नर्तन के जानकार गुणी जन सारे अधिकारी ! 3 पर सर्व गुणी नहीँ था अकबर एक अवगुण था भारी सुँदर नारी से हरम सजाना उसे शौक था भारी ! 4 इसीलिये प्रति वर्ष दिल्ली मै नौ रोज का मेला लगता था सुंदरियों की खोज बीन का जहाँ जाल बुनता था ! 5 राणा प्रताप के अनुज भाई की सुता किरण अति रूपमती थी पिता शक्ति सिँह की पुत्री रजपूती क्षत्राणी थी ! 6 सखियों के संग किरण भी मेला देखने आई थी रूप लावण्य भरी कन्या थी  चेहरे पर रुनाई थी ! 7 उस बार नौ रोज मेले मै अकबर भी आया था बुर्का पहने घूम घूम कर सुन्दरियाँ देख रहा था ! 8 नजर पड़ी किरण बाला पर अकबर की आँखे चमकी देख शिकार नजरो के आगे बीभत्स

इन्द्रधनुषी नार

इन्द्रधनुषी नार ... नव रस नव रंग सरीखी है नव रँगी नार सात रंग के इन्द्र धनुष सा उसके जीवन का सार ! सदा सुखद हो रंगोत्सव ना सदा दुखद सी बात धीमी आँच सा सुलगें नारी का मन संसार ! स्मित सी मुस्कान सजीली सब रंगो को भर लेती फीकी भद्दे रंग ढाप कर समक्ष सरस रंग रख देती ! इंद्रधनुष के सप्त रंगो से अधिक रंग भरी दुनियाँ है जीवन की हर श्वास भिन्न रंग ये ही नारी की द्विविधा हें ! हर पल रंग बदलता रहता नारी के कर्तव्यो का एक तरफ सुर्ख चटकीला दूजी तरफ रहा  फीका! फूंक फूंक कर क़दम रख रही नव रंगो को पजौख रही द्रढ अस्मिता लेकर नारी नव इन्द्र धनुष सँजो रही ! डा .इन्दिरा ✍